रिश्ता
कभी सन्नाटे सा ख़ामोश
कभी शोर मचाता ढ़ोल सा..
कभी कुसुमों का स्तवक
कभी खिलता बसंत सा..
कभी मासूमियत से भरी
कभी अनुरंजित हैं दम्भ सा..
कभी देता हैं अपनेपन का अहसास
कभी हिय की अक्षमता सा..
कभी रिश्ते देते हैं तपन
कभी तपती रेत में ठंढी बूँद सा..
हर रिश्ता बंदिशों से परे
जो नायाब तोहफ़ा हैं ख़ुदा का..!!
मानव जीवन है अनमोल
धरा पर ईश्वर की
अमूल्य रचना..
हैं मानव जीवन..
करो इसका सम्मान
ऐ मानव..
बन जाओगे महान..
सद्गुण, सद्भावना और
शांति का..
फ़ैलाओ तुम सन्देश..
ना बनो ऐ मानव
मानव के दुश्मन..
मन से मिटाओ बैर..
क्रोध, ईष्या औ
झूठे दम्भ में..
फ़ैलाओ ना हिंसात्मक द्वेष..
अपनाओ भाईचारे को तुम
दो अपनेपन का एहसास औ..
प्रेम का संचार करो..
मानव हो तुम
मानव ही बन..
मानवता का मान करो..
शालिनी कुमारी
मुज़फ़्फ़रपुर बिहार
स्वरचित अप्रकाशित रचना