सब में प्रभु का रूप समाया
झिलमिल तारों का श्याम व्योम
अवनि के वक्ष पर अवतरित हिम ओम
अथाह सिंधु की गहन गर्जना
प्रकृति की मनभावन रूप संरचना
सुगंधित पुष्प हिय कनक पराग
सघन तरूवर शीतल अनुराग
कड़वे नीम मृदुल गुणकारी
शीत उष्ण की छवि है न्यारी
प्रकृति का आँचल सबने है पाया
सब में प्रभु का रूप समाया।
प्रातः स्वर्णिम रवि का अभिनंदन
शाम ढले नन्हे दीप का वंदन
नदियों का कल-कल प्रवाह
मंद मंद समीर सुखद एहसास
झरने वन पंछी समृद्ध पशु धन
रेत माटी दलदल के सुन्दर वन
शैशव का निर्लिप्त गोपाल मन
अल्हड़ यौवन प्रबुद्ध संत जन
प्रकृति के आँचल में है सबकी काया
सब मे प्रभु का रूप समाया।
सुबद्ध पद्म में भ्रमर का गुंजन
घटाटोप से विह्वल मोर का नर्तन
पावस कलश से छलके पियूष
स्वाति है पपीहा का आयुष
नव प्रभात संग पंछी का कलरव
नव उड़ान नव जीवन का सिरजन
फल फूलों से लदे सुनहले उद्यान
अन्न धन से समृद्ध खेत खदान
प्रकृति ने अहर्निश प्रेम लुटाया
सब मे प्रभु का रूप समाया।
दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी, अररिया