आओ सब मिल वृक्ष लगाएं
आओ सब मिल वृक्ष लगाएं
पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं
धरा पर थोड़ा वृक्ष बचे हैं
शेष स्वार्थ की बलि चढ़े हैं
जिधर देखो धुआं-धुआं है
सूखा पड़ा ताल-कुआं है
नदी के जल में जहर घुला है
नगर पहले सा नहीं भला है
पर्वत कितने दिखते नंगे
जैसे शहर झेले हों दंगे
भोजन भी हो गया विषैला
जन के मन में भरा है मैला
फल में मिलता सुरस नहीं है
गोंत में पय का दरस नहीं है
बादल भी सहसा फट जाता
जैसे नभ से बम हो गिरता
ओजोन परत जब से डोला
सूरज बना आग का गोला
धरा पर संकट खूब बढ़ा है
आँक्सीजन भी अल्प पड़ा है
वनचर भी बेहाल हुए हैं
जब से इनके घर उजड़े हैं
लुप्त हो रहे गिद्ध-गोरैया
मोर न नाचे ता-धिन-थैया
चैत-वैशाख में ठंड सताती
मरुभूमि में बाढ़ आ जाती
ग्लेशियर भी असीम पिघलता
शहर-शहर सागर बन जाता
पानी बिन हाहाकार मचा है
जहां विटप था, रेणु पड़ा है
मानव बन प्रकृति का दुश्मन
नित्य कर रहे भू का शोषण
अब तो चेतो जग के लोगो
या सुनामी कोरोना झेलो
वृक्ष हमारा जीवन दाता
इससे जनम-जनम का नाता
अस्तित्व हमारा तब बचेगा
जब वसुधा पर वृक्ष रहेगा
यह संदेश सबको समझाएं
नाश जगत पर फिर न छाए
आओ सब मिल वृक्ष लगाएं
पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं।
संजीव प्रियदर्शी
( मौलिक )
फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर