सरस्वती वंदना
छुप गयी हो तुम कहाँ
बताओ माँ तुम “शारदा,”
बसंती चुनर ओढ़कर
तुम धरा पर आओ माँ।
मिट रहा है ज्ञान-ध्यान
घट रही है “साधना”,
मिट रहा है दया-धर्म
घट रही है “भावना”।
विवश आँखें ढूंढे तुझको
अपना पता बताओ माँ,
छुप गयी हो तुम कहाँ
बताओ माँ तुम शारदा।
चीरकर सारे तिमिर को
दरश अपना दिखाओ माँ,
छुप गयी हो तुम कहाँ
बताओ माँ तुम शारदा।
हंस तेरा “मौन” क्यूँ है
क्यूँ नहीं कुछ बोलता,
सोखकर इस जग की जड़ता
“बोध” क्यूँ नहीं छोड़ता।
हाथ जोड़े कर रहे हम
“माँ” तेरी उपासना,
छुप गयी हो तुम कहाँ
बताओ माँ तुम शारदा।
स्वरचित
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार
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