सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय
सदियों पूर्व हमारे शास्त्र ने
यही तो हमें बताया है
सर्वे भवन्तु सुखिनः का
पाठ हमें पढ़ाया है
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय
भारतीय संस्कृति में समाया है
बचपन से हमारे माता पिता
व गुरुजनों ने यही तो हमें सिखाया है
मानव ही नहीं पेड़ पौधों व जीव जंतुओं
को भी हमने गले लगाया है
तभी तो भारत ने विश्व में
अलग अपना स्थान बनाया है।
वर्तमान में थोड़ा हम भ्रमित हो बैठे हैं
आधुनिकता में दिग्भ्रमित हो बैठे हैं
स्वतंत्रता के नाम पर उच्छृंखलता
को हमने अपनाया है
अपने ही पाँव पे खुद
से कुल्हाड़ी मार गिराया है
स्वार्थ साधना की आँधी में
आपसी भाईचारा भूल बैठे हैं
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय
से दूर जा बैठे हैं
पर अब जो धरा पे विपदा आई है
नींद से हमें उसने जगाया है
हमें हमारी गलती का एहसास कराया है
मानव होनें की राह हमें दिखाया है
अब हम फिर से यही संकल्प दोहराते है
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय
को अपनाना है
आने वाली पीढ़ी को यही पाठ पढ़ाना है
मानव को महामानव बनाना है
इस धरा को स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है
बस यही संकल्प दोहराना है
बस यही संकल्प दोहराना है।
कुमकुम कुमारी
मध्य विद्यालय बाँक
जमालपुर, मुंगेर