शांति
यह जग परमपिता की माया
नश्वर काया तनिक विचार करें
परस्पराश्रयी अनमोल जीवन
सबका समुचित सम्मान करें।
दुराग्रह गहन तिमिर से निकल
स्वर्णिम आभा चहुंओर करें
अहर्निश सत्य पथ कदम बढे
हिय स्पंदन शुभ संचार करें।
उर निधि बंधुत्व तरंग संजोये
क्षणिक जीवन साकार करें
सब में एक ही एक को जान
जीवन सुधा रसपान करें।
सदप्रयास तृप्ति मिलती है
परदोषवृत्ति दृढ त्याग करें
काल प्रवाह संग गहाकर
सात्विक अवस्था प्राप्त करें।
ऐश्वर्य अभिमान से दूर
संगति सज्जन की करें
निंदा स्तुति से निकल दूर
सत्संग एकांत ध्यान करें।
“संतोषी सदा सुखी”
संत वचन आत्मसात करें
परमसत्ता अनुराग समर्पित
निज स्वरूप साकार करें।
बाह्य आवरण को उतार
सहजावस्था प्राप्त करें
मन इन्द्रियों का निग्रह कर
आत्मिक शांति संधान करें।
दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी अररिया