शिक्षक दिवस-शुकदेव पाठक

श्री राधाकृष्णन और शिक्षक दिवस

‘शिक्षक दिवस’ की पवित्र कहानी
मद्रास में है ग्राम-‘तिरुत्तनी’
5 सितंबर 1888 का वह दिन
जन्में भारत के अद्वितीय शिक्षाविद
आओ मिलकर इसे मनाएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।
माँ ‘सीताम्मा’, पिता ‘वीरास्वामी’
सनातन संस्कृति के परम स्वाभिमानी
इनके द्वितीय संतान का रूप
नाम पड़ा ‘राधाकृष्णन’ अनूप
आओ मिलकर इसे बताएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।
था गरीब, विद्वान, ब्राम्हण परिवार
राधाकृष्णन में थी प्रतिभा अपार
1902 में किए मैट्रिक पास
1903 में ‘शिवाकामु’ बनी खास
इसे जानकर प्रेरणा जगाएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।
हुई थी 16 वर्ष में शादी
ब्रिटिश साम्राज्य ने दी ‘सर’ की उपाधि
बने महान दार्शनिक हिंदू विचारक
सामाजिक रूढ़िवादिता के संहारक
इनके विषय में बच्चों को पढ़ाएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।
दर्शन, हिंदी, संस्कृत के ज्ञाता
शास्त्रों के प्रति थी ज्ञान पिपासा
रखते थे वेद, उपनिषद का ज्ञान
फैली थी ख्याति हेतु व्याख्यान
इनकी तरह चरित्र सजाएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ।।
‘नेहरू’ जी ने किया आग्रह सोवियत संघ के हुए राजदूत
“भारत रत्न” से हुए सुशोभित
1952 में बने प्रथम उपराष्ट्रपति
1962 में बने द्वितीय राष्ट्रपति
इनकी कृति को जन-जन तक पहुंचाएँ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।
इनकी महानता की सबने स्वीकार
शिक्षक समाज के थे शिल्पकार
1962 में मिला जन्मदिवस को सम्मान
मनाया गया ‘शिक्षक दिवस’ महान
आओ मिलकर हृदय तम को भगाएँ ।
उनके प्रति आभार जताएँ ।।

✍️ शुकदेव पाठक
रा. म. वि. कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा, औरंगाबाद

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