शिक्षक
वह
प्रशान्त दिखता है
शाश्वत रूप यही है उसका
शुरू से
सदियों से
वह पहला
स्नेहिल स्पंदन था
जो फूटा था
पाठशाला के
पहले दिन
उसके ही हाथों से
हमारे तुम्हारे सिर पर
वह अनुभूत सत्य
स्थिर है अब भी
कितनी पीढ़ियाँ
बदल गईं जब भी
स्थिर है
गुरूपद
अविचल सा
अपनी मृदुलता में
मुस्कुराता सा
वह हेतु है आज भी
हमारी पूर्णता का
वह सेतु है अब भी
हमारी जीर्णता का
वह
दिखता है अब भी
प्रशांत
धैर्यपूर्ण आभासिक्त
हमारी गुरु दक्षिणा का भार
सदा सर्वदा से
हम पर छोड़े
वह कर्तव्यलीन है
साधनाशील है…
वह तृप्त है
व्यक्त अव्यक्त
आभारों से
अच्छे संकल्प विचारों से
वह सतत निरत है
दायित्वरत है
ऐसे ही
ऐसे ही
शुरू से
सदियों से…!
शिक्षक दिवस
विनीत मन
विनीत सृष्टि
सभी के नमन का
हेतु वह
वह शिक्षक है
वह शिक्षक है
पूरित किया है जिसने
ज्ञान, शील, संस्कारों से
प्रज्ञा और विचारों से
और पुनः रचित
किया है जिसने
प्रभु की रचना को…
वह शिक्षक है
जिसने उड़ेला है
अपना अधिकतम
झुके सिरों पर
माँ की ममता की तरह
पिता के प्यार की तरह
स्नेहसिक्त डाँट से
मजबूती दी है जिसने…
वह शिक्षक है
उसे आज भी
नहीं चाहिये अधिक कुछ,
अपने पल्लवित शिक्षण से
आनन्दित है वह
आह्लादित है वह
आशान्वित है वह
वह सबका अनुरक्षक है
वह शिक्षक है!
गिरिधर कुमार
संकुल समन्वयक, संकुल म वि बैरिया, अमदाबाद, कटिहार