सीखना-सिखाना
सीखना-सिखाना है मानव का काम,
जन-मानस में हो शिक्षा का ज्ञान।
सीखने की परंपरा हो विकसित,
रहे न कोई भी यहाँ अशिक्षित।
सीखना-सिखाना है जिसका काम,
दुनियाँ में होता है उसका भी नाम।
हर काम सीखना-सिखाना है,
यही दिन और भी ज़माना है।
न कोई भी इसमें बहाना है ,
किस्से और तो अफसाना है।
सीखकर मानव हो जाते हैं महान,
पाकर शिक्षा का वो समुचित ज्ञान।
हम मानव हैं जिज्ञासु प्राणी,
सीख कर हो जाते जो ज्ञानी।
भाषा जाके मन है सामानी,
बोलना विशुद्ध उसे है वाणी।
जन-मानस का हो कल्याण,
शिक्षा का मिले ऐसा वरदान।
सबको मिले शिक्षा सभी को ज्ञान,
भाईचारा हो समरूप एक समान।
सबों को हो सबपे अभिमान,
समुचित शिक्षा समुचित ज्ञान।
✍🏻✍🏻प्रकाश प्रभात
प्राo विo बाँसबाड़ी
बायसी पूर्णियाँ बिहार