सीमाएं
प्रकृति के आँगन में कौतुक क्रीड़ाएं करते
जीवन की संगतियों और विसंगतियों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की परिभाषाएं,
क्यों तय करती है सीमाएं?
उन्मुक्तता की उड़ान भरने वाला,
निरीह मानव मन,
कर बैठे न अपने जीवन का हवन
कामनाओ की प्रचंड अग्नि में,
चिंतन की अथाह सिंधु में,
भटके न जीवन का परम लक्ष्य,
शायद इसलिए प्रकृति ने की सीमाएं तय।
इतिहास की झलक देखकर,
पाया है यही सबब,
जब भी उन्मुक्तता की पंख से भरी
मानव ने उड़ान,
नहीं रहा उसे अपने कर्तव्यों का भान,
कर बैठा है स्वयं पे अभिमान,
कराने वास्तविकता की पहचान,
प्रकृति ने डाली सीमाओं की लगाम।
प्रियंका दुबे
मध्य विद्यालय फरदा, जमालपुर
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