सुबह हुई नींद से जागो
नींद से जागो आँखें खोलो
प्रात: की सुंदर यह बेला है,
रवि की अद्भुत लालिमा से
जगत का सुख अलबेला है।
झटपट करके बिस्तर छोड़ो
मंजन-अंजन करने जाओ,
आलस को तुम दूर भगाकर
ठंडे जल से जल्द नहाओ।
नित्य दिन आंखें खुलते ही तुम
बड़ों को झुककर करो प्रणाम,
अच्छे कामों को करते जाओ
मुख पर लिए मधुर मुस्कान।
नभ में चहचह करती चिडियाँ
मस्त पवन के झोंके गाये,
सड़क पर चल रही गाडियाँ है
सुबह से कितने शोर मचाये।
प्यारे बच्चों नियत समय पर
अब तो विद्यालय जाना है,
मेहनत से है मंजिल मिलती
लक्ष्य से कभी न घबराना है।
साफ-सफाई और अनुशासन का
सदा ही रखना होगा ख्याल,
तब उषा की किरणों के जैसे
सदा उन्नत रहेगा भारत का भाल।
नरेश कुमार ‘निराला’
सहायक शिक्षक
छातापुर, सुपौल