स्वयं की पहचान
क्या कभी पहचाना स्वयं को?
कौन हैं हम?
भूलकर स्वयं को आत्मा
देहाभिमान में ढूंढे,
कौन है परमात्मा?
देह नही तू देही है,
मिलेंगे कैसे वो?
परमात्मा तो विदेही हैं।
देह के सुखों से,
क्या उनका वास्ता?
पाना है गर खुदा को,
तो बदल दे अपना रास्ता
हर धर्म और मजहब का,
वो एक ही जगतनियन्ता।
जैसी अपनी सोच,
वैसा ही बना लिया,
परमात्मा को।
कभी पत्थरों में, कभी वृक्षों में,
कभी ग्रहों और नक्षत्रों,
में बसाया परमात्मा को।
कभी मंदिरों, कभी मस्जिदों,
कभी गिरिजाघरों में,
ढूंढा परमात्मा को।
देह अभिमान में मानव,
भूल बैठा अपनी आत्मा को।
खुद को तो जाना नहीं,
चला ढूंढ़ने खुदा को।
विनाशी सुख पाने लिए,
उलझा रहा केवल,
विधी-विधान में।
फिर भी ना मिला,
वो इस जहाँ में।
पाना है उनको तो,
मौन होकर बैठ,
जरा ध्यान में।
छिड़ गया युद्ध ,
परमात्मा की पहचान में।
हे मानव पहले,
स्वयं को तो पहचान।
तू स्वयं को ,
निश्चय तो कर आत्मा।
पलभर में,
मिल जाएगा प्यारा
परमात्मा।🙏🏻
मधुमिता
मध्य विद्याल सिमलिया
प्रखंड-बायसी
जिला – पूर्णिया(बिहार)