टीओबी है दर्पण
शुक्रिया अदा करूं कैसे,
कोई शब्द नहीं है पास मेरे।
जिनसे न कभी कोई रिश्ता था,
वे परिचित हुए सभी ख़ास मेरे।।
टीओबी ने ऐसा मंच दिया,
शिक्षक लेखक, कवियों को।
आने वाली पीढ़ी भी सदा,
इन्हें याद करेगी सदियों को।।
पद्यपंकज और गद्यगुंजन,
है टीओबी का उपहार बड़ा।
शिक्षकों ने अपने लेखनी से,
साहित्यिक महल किया खड़ा।।
कल तक थे जो केवल विद्यालय में,
आज उनको नया आकाश मिला।
टीओबी से नयी ऊर्जा पाकर,
नूतन साहस, बहुत विश्वास मिला।।
अवसर पाकर सभी आगे बढ़ते,
विद्यालय में नया इतिहास गढ़ते।
नयी सोच, और नवाचार से,
बच्चे रोज ही सीखते, पढ़ते।।
यह मंच हमारा दर्पण बनकर,
हमारी छवि हमें दिखलाता है।
कैसे चमकें, हो कैसे निखार,
यह रोज हमें सिखलाता है।।
हमने ईश्वर को देखा हीं नहीं,
है कैसी छवि, स्वरुप कैसा।
हम रहेंगे शुक्रगुजार उनका,
जो बनाया कलमकार जैसा।।
हमारी कल्पनाओं के पंख लगे,
शिक्षकों को बनाया सृजनहार।
टीओबी हमेशा फूले फले,
जय भारत माता, जय बिहार।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म. वि. बख्तियारपुर (पटना)