वतन ये वतन ये वतन हमारा चमन हमारा वतन तुझपे जान हम लुटाएंगे हमको तेरी कसम हमको तेरी कसम ये वतन है मेरी जान हम है इस चमन के बागबां…
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वे स्वर्णिम दिन-अवनीश कुमार
वे स्वर्णिम दिन वे भी क्या स्वर्णिम दिन थे जब सारी शिक्षा गुरु चरणों में मिल जाया करती थी वेद वेदांग, उपनिषद, ऋचा, ऋचाएँ योग, तंत्र, मंत्र, भूगोल, खगोल की…
मोक्ष की प्रतिक्षा-अवनीश कुमार
मोक्ष की प्रतीक्षा थक जाता जब मानव का तन मन ईश्वर से मोक्ष दिलाने को करता नमन लेकिन आत्मा है उसे पुकारती, उसे धिक्कारती क्या चलने के पहले कुछ…
मित्र-अवनीश कुमार
मित्र मित्र वह जो मन की बात को पढ़ ले मित्र वह जो सारे जहां में एक अनमोल रिश्ता गढ़ ले मित्र वह जो हमारे सारे दोष को आईने की…
प्रेमचंद-अवनीश कुमार
प्रेमचंद क्यों है कथासम्राट का जन्मदिन उपेक्षित क्या उनकी रचनाएँ अब है दम तोड़ती क्या उस कलमकार की रचना में इतना बस भी दम नही कि कर सके हामिद बन…
कलम-अवनीश कुमार
कलम मैं जिसके हाथ बस जाऊँ उसके मैं भाग्य बनाऊँ। मैं हूँ बड़ी अनोखी चीज़ संशय इसमे करे न कोई लोग मुझे कई नामों से जानते कोई मुझे कलम, कोई…