सीखना जीना जैसे सतत अविरल चलते रहना सबक यह पूरा नहीं होता यह रास्ते खत्म नहीं होते कभी यही सौंदर्य अद्वितीयता भी यही अधूरा और पूरे के बीच की समतल और…
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टूटती कविता-गिरिधर कुमार
टूटती सी कविता रंग चटखने लगे हैं इसके परेशान है कविता कोलाहल से किसी कोविड से किसी यास से किसी ब्लैक रेड फंगस के संताप से। बिखरती चेतना से सहमती…
तूफान के संग-गिरिधर कुमार
तूफान के संग घोर तिमिर में घिरा पथिक ढूंढ़ता है राह कुछ मन के अवसादों की पोटली का बोझ सिर पर उठाए विचलित भयभीत है पथिक! ऐसा क्या कुछ हो…
धुंध के बीच-गिरिधर कुमार
धुंध के बीच स्याह सा कुछ तैरता हवाओं में कवि की मुस्कराहट से बौखला जाता है अरे मैं कोरोना हूं तुम बड़े ढीठ इंसान हो डरते नहीं मुझसे। धत्त! ये…
कोरोना कविता और कवि-गिरिधर कुमार
कोरोना कविता और कवि लिख रहा हूं कविता, झांकता है कोरोना ठीक सामने की खिड़की से… अट्टहास करता है वो परिहास के स्वर हैं उसके कवि! भोले कवि तुम्हारी कविता…
यक्ष प्रश्न-गिरिधर कुमार
यक्ष प्रश्न पूछे जाते रहे हैं सवाल कभी हमसे तुमसे युधिष्ठिर से परम्परा रही है यह नियति की उत्तर ढूंढ़ना होता है कभी हमें कभी तुम्हें कभी युधिष्ठिर को यह…
मेरी कविता-गिरिधर कुमार
मेरी कविता मेरी कविता मत हो उदास सोच भी नहीं सकता बिना तुम्हारे कुछ भी… क्या हुआ जो स्याह सी है आबोहवा पसरी हुई हैं खामोशियां किसी कोरोना की कोई…
और फिर कोरोना-गिरिधर कुमार
और फिर कोरोना यह क्या कसौटियां खत्म नहीं होती! कितनी बार कितनी परीक्षाएं कितनी उदासियां कौन सी सीमायें हैं इसकी सारा कुछ तो है कसौटी पर हम हमारे बच्चे हमारा…
वह शिक्षक हैं-गिरिधर कुमार
वह शिक्षक हैं बच्चे, स्कूल कक्षा, कोलाहल अपेक्षाएं अपरिमित सीमाएं और वह शांत है, सजग है, सुदृढ़ है वह शिक्षक है। प्रशंसा की विचलन से अनजान वह आश्वस्त है अपनी…
कोरोना के बाद-गिरिधर कुमार
कोरोना के बाद और जीत ही गया है जीवन बच्चों की किलकारियां फिर से गूँज पड़ी है स्कूलों में इन अरमानों ने कोरोना को पीछे धकेल दिया है यही शाश्वत…