सुबह होने सा कुछ बच्चे अब आएंगे अपनी किलकारियों के साथ हमें निहाल करने फीकी फिजां में रंग भरने और खिल उठा हूँ मैं भी उल्लास से सराबोर जैसे खोया…
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इस बार का दसहरा-गिरिधर कुमार
इस बार का दसहरा मचलता है मन उठते हैं प्रार्थना के स्वर चीरते हैं जैसे कोरोना के अंधियारे को विश्वास का बल आया है सड़कों पर चुहल बढ़ी है हिम्मत…
कागज की नैया-गिरिधर कुमार
कागज की नैया इतनी प्यारी सुंदर कितनी ये मेरी कागज की नैया टिप टिप वर्षा रानी बरसे खूब मटकती मेरी नैया भैया आये दीदी आई छुटकी सी राधू भी आई…
शिक्षा नये मूल्य-गिरिधर कुमार
शिक्षा नये मूल्य वह शिक्षित है ऐसा कहते हैं उसे ठगा जाना मुश्किल है वह ठग लेता है आसानी से दूसरों को कहते हैं उसे नौकरी भी लग गई है……
हमारी कविता-गिरिधर कुमार
हमारी कविता मुझे पता नहीं कैसी है हमारी कविता सुंदर, असुंदर या और कुछ बच्चों की किलकारियाँ शरारतें स्लेट पर खींची आड़ी तिरछी रेखाएँ उनमें झाँकती भविष्य की आशाएँ पतंग…
वो दिन-गिरिधर कुमार
वो दिन कितना बदल गया सब कुछ नियति की इस क्रीडा में अपने ही बच्चों से दूर शिक्षक की इस पीड़ा में… गुजरे जमाने की बात हो जैसे वह मंजर…
हिंदी दिवस-गिरिधर कुमार
हिंदी दिवस हिंदी में बोलते हो सपने देखते हो मन की कहते हो हँसते हो रोते हो दिल खोलते हो फिर भी घबड़ाते हो हिंदी को मौके बेमौके अंग्रेजी में…
उसके सपने मेरे सपने, उदास बचपन-गिरिधर कुमार
उसके सपने मेरे सपने बड़े जतन किये समझने के उसकी तोतली जुबान को शब्द सा कुछ नहीं अर्थ सा कुछ नहीं एक लय! लय सा है फिर भी चलता लुढ़कता…
शिक्षक-गिरिधर कुमार
शिक्षक वह प्रशान्त दिखता है शाश्वत रूप यही है उसका शुरू से सदियों से वह पहला स्नेहिल स्पंदन था जो फूटा था पाठशाला के पहले दिन उसके ही हाथों से…
सुप्रभात-गिरिधर कुमार
सुप्रभात स्वागत है जो आज भी निकला है सूरज बादलों के बाजू में लेकिन चमकता हुआ सुरीला सा कि जैसे धूल मिट्टी से लदा फ़दा कोई बच्चा स्कूल आ गया…