एक ही ईश्वर की संतान – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

(मनहरण घनाक्षरी छंद में) भाग-१सभी लोग खाते अन्न,एक जैसा होता तन,एक ही तो जल पीते, हिंदू मुसलमां हैं। सभी स्वांस लेते हवा,जीवन जीने की दवा,रहने को एक ही तो, जमीं…

रघुनंदन का है शिकार- रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

पद्धरी छंदसम -मात्रिक छंद, 16 मात्राएँआरंभ द्विकल से,पदांत Slअनिवार्य रघुनंदन का है शिकार। हर दिशा निशा लो गईं जाग।सबके होंठों पर एक राग।।रावण का करना आज दाह।घर जाते करना वाह-वाह।।…

शीत-एस.के.पूनम

छंद:-मनहरण घनाक्षरी “शीत” सघन है काली रात,रौशनी है थोड़ी-थोड़ी, बंद हुआ घर-द्वार,जाड़े का आलम है। सूर्य ढ़का तुहिन से,घूप थोड़ा निकाला है, आलस्य डेरा डाला है,सर्दी का पैगाम है। चहल-पहल…