छंद:-मनहरण घनाक्षरी “शीत” सघन है काली रात,रौशनी है थोड़ी-थोड़ी, बंद हुआ घर-द्वार,जाड़े का आलम है। सूर्य ढ़का तुहिन से,घूप थोड़ा निकाला है, आलस्य डेरा डाला है,सर्दी का पैगाम है। चहल-पहल…
SHARE WITH US
Share Your Story on
writers.teachersofbihar@gmail.com
Recent Post
- गिरते दाँत और गाजर- अवनीश कुमार
- Way of life – Ashish Kumar Pathak
- जिन्दगी के दौर में – Sanjay Kumar
- प्यारे थे गाँधी- एम. एस. हुसैन ‘कैमूरी’
- दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
- देश के सच्चे सपूत- अमरनाथ त्रिवेदी
- बापू जी – भोला प्रसाद शर्मा
- गाँधीगिरी अपनाएँ- विवेक कुमार
- गाँधी हुए उदास रे- स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’
- गाँधी- शास्त्री जयंती- रामकिशोर पाठक