छंद:-मनहरण घनाक्षरी “शीत” सघन है काली रात,रौशनी है थोड़ी-थोड़ी, बंद हुआ घर-द्वार,जाड़े का आलम है। सूर्य ढ़का तुहिन से,घूप थोड़ा निकाला है, आलस्य डेरा डाला है,सर्दी का पैगाम है। चहल-पहल…
SHARE WITH US
Share Your Story on
writers.teachersofbihar@gmail.com
Recent Post
- होली सबकी प्यारी है- देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
- होली आई रे – विवेक कुमार
- होठों पर मुस्कान सजे हर बार होली में – रूचिका
- होली का त्योहार- भोला प्रसाद शर्मा
- आया रंगों का त्योहार – अमरनाथ त्रिवेदी
- फिर देख बहारें होली की – संजय कुमार
- रंगोत्सव की राधा- रसधारा- सुरेश कुमार गौरव
- होली का त्योहार है अनुपम- अमरनाथ त्रिवेदी
- वो होली का अंदाज़ कहाँ -अवनीश कुमार
- केसर हो जाइए- विधा- मनहरण घनाक्षरी- रामकिशोर पाठक