वसुंधरा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

वसुंधरा वसुंधरा सदा पावन बने बहे हृदय ऐसा विचार। हरी-भरी नित इसे बनाकर करें हम जीवन साकार।। इस धरा पर शस्य जब उगते मिलती हैं खुशियाँ अपार। रखें नहीं कलुषित…

जन्मभूमि-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

जन्मभूमि जन्मभूमि की पावन स्मृति खत्म कभी मत होने दें। नील गगन से देख विहग नीड़ कभी न खोने दें।। देश-भक्ति की सलिला में नित मिलजुल हम स्नान करें। मन…

निराला बिहार-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

निराला बिहार सदा गर्व से कहता हूँ मैं, भू बिहार की प्यारी है। सकल देश सारी दुनिया में, अद्भुत शान हमारी है।। जन्मभूमि राजेन्द्र, कुँवर की, लगती बहुत निराली है।…

प्रवेशोत्सव नारा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

प्रवेशोत्सव नारा उत्सव का यह दिन आया है, बच्चों का मन भाया है। बातें प्रवेश की आई हैं, नूतन खुशियाँ छाई हैं। मन हर्षित हो करें पढ़ाई, छिपी इसमें है…

प्रवेश उत्सव-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

प्रवेश उत्सव प्रवेश उत्सव आ गया, बच्चे खुश हैं आज। चहकी है किलकारियाँ, देख बिरंगी साज।। मन में नई उमंग है, किसे कहूँ यह बात। विद्यालय तो खुल गया, अभी…

अभिलाषा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

अभिलाषा मेरी यह तो अभिलाषा है उर को पावन नित बनाऊँ। जन-जन शिक्षा अलख जगाकर मन को सुघड़ कार्य लगाऊँ।। मेरी यह ——————-। भाग्य से मानुष तन मिला है। दिल…

प्रेम से जीना सीखें-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

प्रेम से जीना सीखें सदा प्रेम से जीना सीखें प्रेम ही जीवन सार है। अगर प्रेम से नहीं रहोगे जीवन तभी बेकार है।।  नहीं कभी बिकता है जानो यही तो…

अपना गणतंत्र-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

अपना गणतंत्र  अपने गणतंत्र का जगत में मिलकर ही मान बढ़ाएँगे। इसकी बगिया में हम नित एक नया प्रसून खिलाएँगे।। अपने गणतंत्र—– गण है तभी सारा तंत्र है। एकता ही…