निश्छल बंधन-नितेश आनन्द

निश्छल बंधन अतुलनीय है प्रकृति जिसकी, मिली है उसकी छांव हमें, बिन बंधनों के साथ चला मैं, मिल जाए कहीं वरदान हमें। स्वभाव सरल तो है हीं तेरा, हृदय भी…