बाबुल की गुड़िया-डाॅ अनुपमा श्रीवास्तव

बाबुल की गुड़िया हो सके तो समझो दुनियाँ एक पिता के “मर्म” को, रख कर अपने दिल पे पत्थर निभाता पिता के धर्म को। “बूत” बनकर है निभाता रस्म “कन्यदान”…