महावीर-अवनीश कुमार

महावीर निरन्तर प्रभेदक बन जो पर्वतों को काटा करते रहते हैं सागर की धारा को जो मोड़ सके ऐसा बल भर कर चलते रहते हैं लड़ जाते है जो बिजलियों…