लोहार – रामपाल प्रसाद सिंह

लोहार लोहे पर निर्भर जीवन,लोहार हूॅं मैं।कम पैसे में काम करूॅं,उपकार हूॅं मैं।विस्मित कर देता जग को,फनकार हूॅं मैं।मानसून के संग चलूॅं,बौछार हूॅं मैं।जिसने बसा लिया उसका,संस्कार हूॅं मैं।चोर उचक्के…