वसुंधरा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

वसुंधरा वसुंधरा सदा पावन बने बहे हृदय ऐसा विचार। हरी-भरी नित इसे बनाकर करें हम जीवन साकार।। इस धरा पर शस्य जब उगते मिलती हैं खुशियाँ अपार। रखें नहीं कलुषित…

वसुंधरा-मधु कुमारी

वसुंधरा माँ वसुंधरा का किया प्रकृति ने अद्भुत श्रृंगार जहां विहग भी करते हैं हरपल सौंदर्य विहार कनक समान धरती चमकती और आसमां भी करते मधुर मलहार…….. बहती नदियां कलकल…