शहर शहरों की रौनक होती भीड़ है पर ये तो सहता रहता पीर है हरित, शांति को ये सदा तरसता पल-पल वाहनों से धुआँ बरसता जहाँ भी देखो शोर-शराबा है…
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स्वरचित कविता का प्रकाशन
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