शीतलता के बीच एक दोपहरी भटकी- रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

शीतलता के बीच एक दोपहरी भटकी।रोला कैसा है लावण्य, रूपसी नाजुक नारी।कोमल पीपल पात,सरीखे डिगती डारी।।जो जाते उस राह,भनक लेते जो तेरा।झलकी लेकर पास,अटककर लेते फेरा।। बिन जाने तव चाह,चाह…