सामाजिक समानता – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

मनहरण घनाक्षरी छंद सैकड़ो हैं धर्म-पंथ,जिसका नहीं है अंत,दुनिया में गरीबों की, होती नहीं जात है। दिन भर कमाते हैं,जो भी मिले खा लेते हैं,जहांँ होती शाम वहीं, कट जाती…