अखंड भारत पनप रहे हर शब्द बीज से अखंड भारत का वटवृक्ष बनेगा, अबोल स्वप्न नैनों में सजाए नवसृजन का नव द्वार खुलेगा, बँट रहे हों भले देश कितने भारत…
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प्रकृति-अर्चना गुप्ता
प्रकृति प्रकृति की प्रवृत्ति आदिकाल से ही निश्छल सहज और सौम्य रही है करती रही है चिरकाल से सबकी तृष्णाओं को तृप्त प्रवाहित होती रही है सदा स्थूल जगत में…
पटरी पर लौटती जिंदगी-अर्चना गुप्ता
पटरी पर लौटती जिंदगी छाई है जो ऐसी महामारी हाहाकार मची बड़ी भारी सांसत में है सबकी जान हो गई है ऐसी लाचारी भूख से सब बेबस हो निकले गुजर-बसर…
रक्षाबंधन-अर्चना गुप्ता
रक्षाबंधन रक्षाबंधन का त्योहार पावन चिर स्नेहिल रक्षा का बंधन प्रीत से बँधी ये रेशम डोरी भाई को लागे अति सुहावन सावन का ये प्यारा मौसम भाई-बहन के प्रेम का…
मित्र-अर्चना गुप्ता
मित्र मँझधार में जब पड़ा हो जीवन दे पग-पग साथ रख निर्मल मन संबंध भले ही कोई ना उनसे पर बाँध रखे स्नेहिल सा बंधन हो यही एक मित्र समर्पण…
प्यारा गाँव-अर्चना गुप्ता
प्यारा गाँव याद बहुत आता है मुझको सुंदर सा मेरा प्यारा गाँव हरे भरे से वो बाग बगीचे पट खोले कलियाँ आँखे मींचे धरती का स्वर्ग यहीं समाए सब दांव…