क्षितिज के पार हिम वेदना को पिघलाने नयनो के अश्रुकोश लुटाने विकल मन को त्राण दिलाने अन्तर्मन छवि पावन बसाने आओ चले क्षितिज के पार । कुत्सित भाव विचार…
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स्वरचित कविता का प्रकाशन
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