कुण्डलिया
तन्हा-तन्हा है आज-कल, यहाँ सकल संसार।
कारण इसका क्या भला, करिए जरा विचार।।
करिए जरा विचार, कभी खुद को भी झाँके।
बना बहाना काम, नहीं औरों को ताके।।
होते सभी समान, नहीं कोई कभी नन्हा।
बदली जिनकी सोच, वही रहते यहाँ तन्हा।।०१।।
सुविधा की बस होड़ ले, दौड़ रहे हर लोग।
समय किसी के पास में, मिलता बस संयोग।
मिलता बस संयोग, यही है चिंता भारी।
संगी साथी आज, लगे जैसे लाचारी।।
तन्हा किया है आज, सभी के मन की दुविधा।
भूल गए परिवार, मिला ज्यों ही हर सुविधा।।०२।।
बीते लम्हे कह रहे, हमें हमारी बात।
तन्हा-तन्हा सा क्यों भला, गुजरी सारी रात।।
गुजरी सारी रात, हमें क्यों रास न आया।
मिला नहीं आराम, भला क्या जग में पाया।।
कौन बताए आज, भला ये दिन क्यों रीते।
लम्हे कितने खास, तन्हाई में है बीते।।०३।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
तन्हा तन्हा..राम किशोर पाठक
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