तू बचा ले .रामपाल प्रसाद सिंह

सीता छंद वर्णिक 15 वर्ण
2122-2122=2122-212
तू बचा ले डूबने से।
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लूटती लज्जा हमारी,नैन क्यों ना खोलते।
खो गया है धैर्य मेरा,हो तराजू तोलते।।
तू कहाॅंं मैं हूॅं कहाॅं जी,हो गई दूरी कहीं।
ऑंख मेरी बंद होती,लाज पर्दा में नहीं।।

हाथ लज्जा नोचने को,है यहाॅं आगे बढ़े।
वीर द्रष्टा सो गए या,मूक हैं बैठे खड़े।।
भूल मैंने तो नहीं की,दंड मेरे को मिली।
आसमां रोता हुआ है,भूमि भारी है हिली।।

बाढ़ भारी आ गयी है,मैं फॅंसी हूॅं धार में।
देखते हैं लोग जो भी,वे पड़े लाचार में।।
हे मुरारी!भ्रात मेरे,आखिरी आधार हो।
तू बचा लो डूबने से,धर्म का आकार हो।।
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रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर

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