उम्मीदों की उड़ान
धैर्य रख तू “मन” के पंछी
घनेरा धुँध छट जायेगा,
उम्मीदों की झोली लेकर
फिर नया “सवेरा” आयेगा।
कसकर पकड़ ले तू परिंदे
उम्मीदों के “शाख” को,
हिम्मत नहीं अल्लढ़ हवा
मरोड़ दे तेरे “पांख” को।
जोड़कर तुमने बनाया
तिनके का जो घोंसला,
है कहाँ दम तूफाँ में जो
तोड़ दे तेरा हौसला!
छोड़ दे तू डर के जीना
कौन तुझे डरायेगा,
हौसलें का “पंख” लेकर
तू गगन छू पायेगा।
टूटती उम्मीद हमसे
छीनती “पहचान” है,
उम्मीदों की हवा हमको
देती नई “उड़ान” है।
स्वरचित
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 🙏🙏
मुजफ्फरपुर, बिहार
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