उठो उठो सुबह हुई
सुबह-सुबह दादी क्यों ?
चिड़िया खिड़की पर आ जाती है
आ जाती है तो आ जाती है
शोर क्यों इतना मचाती है ?
उछल-कूद करती है
फुर्र-फुर्र कर देखो दादी !
कमरे में भी आ जाती है
नींद हराम कर जाती है।
मंद-मंद मुस्कायी दादी
बालों को सहलायी दादी
ओ! मेरे प्यारे लल्ला
तू बिस्तर छोड़े तो बताऊँ
चिड़ियों के मन की बात सुनाऊँ।
झटपट उठ बैठा वो
गाल हाथ पर टिकाया वो
लगा सुनने दादी की बात।
ये जो चिड़िया रानी है
सुबह-सुबह जग जाती है
दाना चुगने दूर-दूर तक जाती है
मिलता नहीं जब खेत-खलिहान
दिखता नहीं जब
फलों का बाग-बगीचा
तो खिड़की-खिड़की आस लगाती है।
तो लल्ला ! रोज सुबह उठकर
खिड़की पर दाना-पानी रख देती हूँ
वो आकर खुशी-खुशी चुगती है
अपने दोस्तों को भी बुलाती है।
सब मिल-बांट कर खाती है
फुर्र-फुर्र कर कमरे में आती है
आकर तुम्हें भी जगाती है
उठो उठो! सुबह हुई
जो देर तक सोता है
सेहत अपनी खोता है।
रानी सिंह
पूर्णियाँ, बिहार