वसुन्धरा
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।
बिना बोले अपनी भाषा में देती संदेश दर्दभरा।।
पेड़-पौधे कट रहे, पृथ्वी हो रही विरान है।
स्वच्छ हवा, निर्मल पानी में बसते सबके प्राण हैं।।
आओ साथ बैठकर आपस में करें मशविरा।
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।।
धरती मां की गोद में, पैदा हुए संतान हो।
मातृभूमि के दर्द से, बने हुए अनजान हो।।
प्रदूषण से बचाने को किसका करें हम आसरा?
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।।
अपने सुन्दर हाथों से यदि एक पेड़ लगाओगे।
पर्यावरण भी बचेगा, मीठे फल भी खाओगे।।
ओढ़कर चुनर धानी यह बन जाएगी अप्सरा।
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।।
पेड़ों की टहनियों पर पक्षी जब घोंसला बनाएंगे।
उन डालों पर फुदक-फुदक कर सुन्दर गीत सुनाएंगे।।
दामन इसका वन, बागों से हो जाएगा हरा-भरा।
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।।
वन, पर्वत, नदियों का तूने अंधाधुंध दोहन किया।
फल-फूल और लताओं, औषधियों का अवशोषण किया।।
बहुत हो चुका अत्याचार, अब तो ठहरो ज़रा!!
आओ देश वासियों तुझे पुकारती वसुन्धरा।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि
बाढ़, पटना