विनती सुन लो-देव कांत मिश्र दिव्य

विनती सुन लो

विनती सुन लो हे करतार
आया हूँ मैं तेरे द्वार।
सपना मेरा हो साकार
विद्या का भर दो भंडार।।

देते गुरु हैं ज्ञान अपार
मातु पिता जीवन का सार।
जीवन खुशियों का संसार
हिय में आये सरस विचार।।

विनती करता आठों याम
बनते बिगड़े सारे काम।
सुमिरन करना सीताराम
जीवन हो जाये अभिराम।।

कृपानाथ करना उपकार
कर दो सबका बेड़ा पार।
प्राणी कोई हो न उदास।
मुझको है ऐसा विश्वास।।

रसना पर तू ला दे राम
बढ़ जायेगा तेरा नाम।
स्नेह भाव से करना गान।
जीवन का है यही विधान।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ भागलपुर, बिहार

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply