विवसता-रुचि सिन्हा

विवशता

प्रकृति ने गजब रौद्र रूप अपनाई है ,
एक तरफ है कुंआ तो दूसरी तरफ खाई है ।
हे ईश्वर ये तूने कैसी घड़ी लाई है ।
चहुँ ओर महामारी, भूखमरी, बेरोजगारी,
उस पर बाढ़ ने भी खूब तबाही मचाई है ।
कल तक जो जुल्म हमने तुझपे किये ,
अब तूने भी कहर बरपाई है ।
हे ईश्वर! ये तूने कैसी घड़ी लाई है ।
चीख रही है जिंदगियाँ, मौत भी घबराई है ,
टूट रहे हैं हौंसले विश्वास भी डगमगाई है l
खुद जीने की जद्दोजहद, औरों की भी दुहाई है, दूर जो बेबस लाचार पड़ा वह भी तो मेरा भाई है ।
हे ईश्वर!! ये तूने कैसी घड़ी लाई है ।
कांप रहे हैं रूहें अपनी पृथ्वी जो यूँ थर्राई है। 
रिश्तों ने अपनों से मुँह है मोड़ा,
कैसी मजबूरी आई है ।
गुजर जाएँ गर जो ये मुश्किल दौर भी ,
रह जाएँगे उनके जख्म तब भी जिन्होंने सबकुछ ही गँवाई है ।
हे ईश्वर!! ये तूने कैसी घड़ी लाई है ।

रुचि सिन्हा प्रखंड

उत्त. मध्य विद्या. चांदपरना

मीनापुर मुजफ्फरपुर
मो 9523999354 ईमेल – ruchisinha039849@gmail.com

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