स्व कर्तव्य
जिसने हमें पहचान दिया
उसके प्रति वफादार रहें
दिनोंदिन उन्नति होगी
कटु सत्य को याद रखें।
क्या मात पिता को छोड़ जगत में
दूजों को अपनाते हैं
दूजे तो दूजे ही रहेंगे
न अपना बन पाते हैं।
इसी तरह जब कोई संस्था
है पहचान दिलाती तो
उसका नित आभार बने
न पकड़ें दूजे के दामन को।
दूजे से शोषित ही होते
जो पहले से दूर गए
बाद में फिर पछताना होता
ऐसे कहीं का नहीं हुए।
फिर सोच सोच पछताने से
हाथ न आता है कुछ भी
जो आदर पहले से मिलता
दूजों से न मिले कभी।
नीलकंठ करता है विनती
अपनों सह वफादार बने
कभी नहीं ठोकर खाएँगे
खुशियाँ जीवन में भर लें।
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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