यादों के आँगन में
यादों के “आँगन” में
कुछ देर बैठकर,
बीती कुछ बातों को
“पलकों” में समेटकर।
याद किया कैसे तुम
“साल” बन कर आए थे,
मैंने भी खुशियों के कुछ
“दीये” जलाये थे।
मुड़ के पिछे देखा तो
धुंधली सी “परछाई” थी,
बिछड़ गये रिश्तों की
“याद” बहुत आई थी।
कुछ “अपने” छूट गए
कुछ मुझसे रूठ गये,
“रिश्तों की माला” से
“मोती” कुछ टूट गये।
जिन्दगी है “मौसम” तो
हर पल वो जाएगा,
फुटेगी “कोपले”
जब नया साल आएगा।
वादा लो फिर से तुम
“दीया” बनकर आओगे,
बरस भर जीवन में
रौशनी फैलाओगे।
डॉ अनुपमा श्रीवास्तव 🙏🙏
मुजफ्फरपुर बिहार
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