अकेलापन
जीवन की रणभूमि में हम सब अकेले हैं,
सुख-दुख बांटने हेतु ही इस जग के मेले हैं,
जब पड़ जाओ अकेला तुम, सोचो अकेले ही काफी हो,
है तुम्हारा सत्कर्म, आदर्श साथ, न सोचो दुर्बल, पापी हो,
महान कार्य करने के लिए पहले अकेले ही चलना पड़ता है,
कुछ सफलता जब मिले तो ही पीछे-पीछे कारवाँ लगता है,
अकेला कोई नहीं कदाचित् जग में प्रभु होते हैं हमारे साथ,
बुद्धि मार्गदर्शक, धैर्य मित्र, आत्मावलंबन का ही होता हाथ ।
…… गिरीन्द्र मोहन झा
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