क्या हुआ जो सिंह गर्जन कर रहे अंजान पथ में,
क्या हुआ जो शूल अग्नि की दहक है नव सृजन में।
है यही अनमोल जीवन और सृजन हार तुम हो,
ना है रुकना ना है थकना विजय पथ के तुम पथिक हो।
क्या हुआ जो न्याय पथ पर पड़ गए हो तुम अकेले,
क्या हुआ जो अरि की सेना ने लिया चहुँ दिशि घेरे।
क्या हुआ जो तुम विरथ हो और रथी सम्मुख हैँ तेरे,
उठ सम्भलकर चल प्रखर वन विजय पथ संकल्प ले के।
क्या हुआ जो अश्रु सिंचित लोल और कपोल तेरे,
क्या हुआ जो नित अंगारे हैँ बरसते इस गगन से।
क्या हुआ जो कोटिशः कुपित अँधेरे राह घेरे,
एक रश्मि है निकलती नव विहान का राग ले के।
चिरता है तम का सीना नित्य रवि अवतार ले के,
खग विहग कलरव चहकते हैँ सुबह नव गान ले के।
कर लो वंदन विजय चन्दन तुम पथिक स्व मान लेके,
जीवन है अनमोल तेरा चल पथिक संधान ले के।
है यही अनमोल जीवन और सृजनहार तुम हो,
ना है रुकना ना है थकना विजय पथ के तुम पथिक हो।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार