अपवित्र नही है पवित्र महामारी
स्त्रियों में होती है जो तथाकथित ‘अपवित्र’ माहवारी।
उससे ही तो जन्म लेती है ‘सृष्टि’ सारी।
यूँ तो सिमटी होती है उसमें दुनिया सारी।
मगर ये दुनिया ही कहती है उसे अपवित्र, एक ‘बीमारी’?
आखिर क्यों नही समझती ये दुनिया उनके सृजन की तैयारी।
अपनो से ही रहती दूर, एक कोने में पड़ी पराई-सी बन के हत्यारी-सी बेचारी।
जननी जन के पुरुषों के ‘अरमान’ सबको देती खुशियां सारी।
फिर भी दुनिया क्यों नही समझती उनकी माहवारी।
लाख सुनती ताने, पर सबके खुशी में खुश हो लेती है ‘महतारी’।
हाय! जननी की सहने की पीड़ा और लाचारी।
पत्नी, बहन, बेटी, माँ बन संजोती है दुनिया हमारी।
फिर क्यों दुनिया के नजर में अछूत है ‘पवित्र’ महामारी ?
सुनिल कुमार
(सहायक शिक्षक)
राजकीय उत्क्रमित मध्य सह माध्यमिक विद्यालय, पचरुखा,
बगहा-2, पश्चिम चम्पारण, बिहार
सुनिल कुमार