आतंक एक नासूर – जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

रुप घनाक्षरी छंद में

सीमाओं की रक्षा हेतु,
कुर्बानी भी देनी होगी,
कभी नहीं अधिकार, माँगा जाता हाथ जोड़।

बार-बार मरने से-
अच्छा होगा खेत आना,
डरकर भागता जो, कहलाता रणछोड़।

बिना अब देर किए-
इजराइल की भांति,
शत्रु के ऊपर करें ,प्रहार ताबड़तोड़ ।

आतंक की घटनाएंँ-
बन गई हैं नासूर,
नहीं रह सकते हैं, समस्या से मुंँह मोड़।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना

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