उपयोगी वृक्ष – कर्ण छंद – राम किशोर पाठक

उपयोगी वृक्ष – कर्ण छंद

तरुवर का रखकर ध्यान, सदा जीवन को सुखमय पाते।
देकर इनको हम मान, धरा को पावन करते जाते।।
तरुवर हैं जीवन मूल, यहाँ अबतक जिसने भी जाना।
रक्षण करने का भाव, सदा उसने चाहा अपनाना।।०१।।

अपना घर देखा आज, भरा पाया हूँ कोना-कोना।
सँवरा है चारों ओर, सलोना लगता सोना-सोना।।
हरपल जो आठों याम, जहाँ हम इनकी सेवा लेते।
बदले में हम-सब खाक, इन्हें क्या कुछ भी हैं हम देते।।०२।।

वर्षा होती जो घनघोर, हवा की आती जाती झोंके।
तरुवर रखता है बाँध, मृदा को बहने से भी रोके।।
लो महिमा इसकी जान, यही जीवन अपना मुस्काएँ।
आओ सब मिलकर आज, लता तरुवर की गाथा गाएँ।।०३।।

सबका जीवन आधार, यही तरुवर होता है भाई।
लेते हैं हम जो श्वास, हवा इससे ही सबने पाई।।
ऋतुओं का निर्माण, करें बनकर तरुवर सहयोगी।
औषध का है तरु खान, नहीं रह पाए कोई रोगी।।०४।।

दूषित को करता शुद्ध, सदा जल प्लावन को भी रोके।
कोई इसको दे काट, उसे तो झटपट कोई टोके।।
इनसे मिटती है भूख, हमें जी भर खाना हैं देते।
देते हैं हमको छाँव, नहीं हमसे कुछ भी हैं लेते।।०५।।

इनसे पाते फल फूल, यही सब्जी भी सबको देते।
धरती का यह श्रृंगार, हमारे मन को भी हर लेते।।
सुविधाओं का अंबार, इन्हीं से रहते हम-सब पाते।
रिश्ता इनसे अनमोल, समझिए तरु जीवन के नाते।।०६।।

सूरज का बढ़ता ताप, करे सबकी तरुवर रखवाली।
यह तरुवर का उपकार, किया है जीवन को मतवाली।।
“पाठक” करता है विनय, इसे ज्यादा से ज्यादा रोपे।
हरियाली जीवन अंग, नहीं अब खंजर कोई घोंपे।।०७।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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