उम्मीद के दीए- सुरेश कुमार गौरव

नित मन की अमराईयों में,
मन की बातें बोलती हैं,
नीरस से सरस जीवन के,
मिश्रित पीयूष रस घोलती हैं।

समय बीत रहा है पल-पल,
कह रहा है, हों सब प्रतिबद्ध,
उम्मीद के दीए जला ऐ पथिक,
मन, मनदीप के द्वार खोलती है।

हो न कभी तू अविचल,
मन कह रहा है अविकल हो चल,
विपदा काल मिटेगा एक दिन,
तन-मन हर्षित हो मुस्काती है।

खिलेंगे, चहकेंगे और दमकेंगे,
कर्ण सुनेंगे, ज्ञान मस्तक चूमेंगे,
भले दूरियाँ हैं यह पल छिन,
शिक्षालय के ज्ञान गीत गाती है।

आशा ही जीवन है, जीवन की आशा है,
ये समय विपदा जाएगी एक दिन,
शिक्षा मंदिर के कोंपल किसलय बोल,
स्वर लहरी बन बंद द्वार खोलती है।

नित मन की अमराईयों में,
मन की बातें बोलती हैं,
नीरस से सरस जीवन के,
मिश्रित पीयूष रस घोलती हैं।

सुरेश कुमार गौरव, उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा,

पटना (बिहार)

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