वह बरगद,
वह बरगद की छांव…
सभी के लिए
स्वीकार मन में,
सभी के लिए
प्यार मन में,
वह छांव नहीं है अब!
…है,
अब भी है,
हर शिक्षक शिक्षार्थी के
हृदय में,
सजीव,जीवंत,
जैसे वह थे,
जो प्रेरणा के उद्बोधन थे उनके,
सदैव आलोकित
होने की,
सदैव आलोकित
करने की…
…नमन आपको,
गुरुश्रेष्ठ!
आप अमर हैं यादों में,
नेतृत्व दिया जो
अग्रज सा,
हृदय के उन
आभारों में…
मन उदास,
अधीरज सा,
वह कमी न कभी
भर पाएगी,
हे शिक्षक रत्न!
हे कवि हृदय…
यह याद कभी न जाएगी!
गिरिधर कुमार,शिक्षक, उमवि जियामारी, अमदाबाद, कटिहार
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