कट जाता बंधन- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

जलहरण घनाक्षरी छंद

एक साथ चारों भाई
पालने में झूल रहे,
देख मनोहारी छवि, पाया दुनिया का धन।

ऐसे रघुवर पर
दिल बलिहारी जाए,
राजीव नयन पर, है तन-मन अर्पण।

राम जी से नाता जोड़
घर परिवार छोड़,
शरण में आने पर, है कट जाता बंधन।

अवध सरकार का
कृपा दृष्टि मिलने से,
दुनिया का धनवान, है बन जाता निर्धन।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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