जलहरण घनाक्षरी छंद
एक साथ चारों भाई
पालने में झूल रहे,
देख मनोहारी छवि, पाया दुनिया का धन।
ऐसे रघुवर पर
दिल बलिहारी जाए,
राजीव नयन पर, है तन-मन अर्पण।
राम जी से नाता जोड़
घर परिवार छोड़,
शरण में आने पर, है कट जाता बंधन।
अवध सरकार का
कृपा दृष्टि मिलने से,
दुनिया का धनवान, है बन जाता निर्धन।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
0 Likes