कर्त्तव्य बिना अधिकार नहीं
कर्त्तव्य बिना अधिकार नहीं ,
इस जीव जगत के पार नहीं।
यह जीवन की ऐसी थाती है,
कभी इसके बिना स्वीकार नहीं ।
परिस्थितियां चाहे जैसी हों ,
मनुज का कर्त्तव्य पहले आता।
विवेकी पुरुष का निर्मल चित्त,
कर्त्तव्य में सदा रमा रहता।
यह दुर्व्यसनों को हरता है ,
कुचक्रों को दूर भगाता है।
कर्त्तव्यों में रुचि लेने से,
अपना भी दिल बहलता है।
अधिकार तो एक दिन मिलना है ,
जब कर्त्तव्य अपना मुख खोलता है।
हौसलें की नई- नई उड़ानों को,
वह हँस- हँस कर भी कुछ बोलता है।
कर्त्तव्य ऐसा तुम कर जाओ,
जो अधिकार सरीखा बढ़ता है।
संयम और अनुशासन से,
यह अमित पराक्रम गढ़ता है।
अधिकार के लिए क्यों मरता मानव ,
वह स्वयं चल कर पास आता है ।
जब कर्त्तव्य बने उस सीमा तक ,
निश्चित हीं अधिकार की खुशबू लाता है ।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा , जिला मुजफ्फरपुर
