कविता की महिमा है न्यारी,
दिल को लगती बड़ी ही प्यारी।
जो कोई इसमें खोना चाहे,
मिलती खुशियाँ ढेरों सारी।
कौन सी है वह बात,
जो कविता में आती नहीं।
कौन सी है वह बात,
जो मन को भाती नहीं।
कम शब्दों में वह उकेरती,
दुनिया के हर रंग को।
कम शब्दों में ही शहद घोलती,
दुनिया के हर ढंग को।
संस्कृति का उत्थान है कविता,
यह सभ्यता का वरदान है।
सरस, सुभग संस्कार को ढोती,
यह उस भाषा का सम्मान है।
कम शब्दों में जो संदर्भ पिरोए,
गरिमा है उस भाषा की।
कम शब्दों में जो सरस बना दे,
जीवन के हर परिभाषा की।
शब्दों की ऐसी लड़ियाँ जो
मन को आनंदित कर दे।
तन मन में ऐसी ज्योति जगाए,
जो दिल को सानंदित कर दे।
कविता की उत्पत्ति ही
प्रेम सद्भाव से होता है।
जो इस राज को जान गया
वह संयम कभी न खोता है।
कविता ही वह स्पंदन,
जो दिल के तार भी जोड़े।
कविता ही वह प्रेमांगन,
जो मन के तार टटोले।
कवि की वाणी कविता है,
जो रवि से आगे बोले।
कविता ही वह वाणी सरस है,
जो रस अमृत भी घोले।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर