कहाँ गए वो दिन ?
जिसकी दास्तां इतनी करीब थी ।
थे लोग प्यार में ऐसे पगे ,
जहाँ हर खुशियाँ नसीब थीं।।
प्यार के हर बोल पर ,
मिटती थी हर परेशानियाँ
प्यार की हर अदा पर ,
न रूखी रहती थी थालियाँ ।।
भेद न रखते थे दिल में कभी,
न थीं कहीं भेद की निशानियाँ।
खुशियों में समेट ली जाती थीं ,
किसी की भी परेशानियाँ ।।
मुश्किलों में भी साथ चलने की,
परम्परा कभी जाती नहीं थी।
था भाव अपनेपन का सदा,
प्रेम दिल से कभी खाली न था।।
वचन निभाना जानते थे,
थे वचन के वे पक्के अमीर।
नेक दिल के इंसान होते ,
न कोई था दिल का फकीर।।
न मन में खुदगर्जी थी तनिक भी ,
न लोग स्वार्थ में संलग्न थे ।
न जानते थे अधिक बातें बनाना,
निज कर्त्तव्य में अति निमग्न थे।।
बूढ़े माँ- बाप की इज्जत थी घर में,
बड़ों का मान था, सम्मान था।
घर खुशियों से था दमकता,
न किसी के प्रति असम्मान था।।
अपनी विरासत और संस्कृति से ,
लोगों का बेहद ही लगाव था।
वृद्धाश्रम की कोई कल्पना न थी ,
न बड़े बूढों से कोई दुराव था ।।
आज बाप, बेटे पर न यकीन करता ,
हाय ! कैसी यह बयार है !
बेटा, बाप का न ख्याल रखता,
हाय ! इस संबंध को धिक्कार है!
आज क्या से क्या हो गया,
समझ में तनिक भी आता नही है।
जिस माँ- बाप ने पाला पोसा यत्न से ,
आज कद्र उसका होता नहीं है।।
है क्या पता उसके पिता ने ,
यत्न उसके लिए कितने किए थे ?
अपने सपनों को जड़ से उजाड़ ,
उसके सारे सपने बुन दिए थे।।
आज स्वार्थ ही सर्वत्र जगत में ,
सर्वत्र स्वार्थ की तस्वीर है।
लोग अधिक बातें बनाना जानते
अब केवल बात की जंजीर है।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा , जिला- मुजफ्फरपुर