मनहरण घनाक्षरी
पुकारीं दुलारी राधा,ढूंढ़ती फिरती कान्हा,
नयन निहारी राह,पूछी कहाँ श्याम हैं।
मुकुट शोभित भाल,बाँहों पर भुजबंध,
कंठमाला मोतियों का,वही घनश्याम हैं।
यमुना किनारे बंसी,बजाए मुरलीधर,
श्रवण करती राधा,केशव ही राम हैं।
केशव,माधव,विष्णु,राधिका जपतीं नाम,
गोविन्द,मुरारी कहें,कृष्ण को प्रणाम है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ
(पटना)
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