कोई मरे कोई सैर करे-मो.मंजूर आलम

Mansur

बाजारों में सजे हैं
स्वेटर मफलर कंबल रजाई
रंग बिरंग के!

कुछ बच्चे ठिठुर रहे हैं
पड़े हैं घरों में दुबके !

और कोई निकला है
गुलमर्ग की सैर पे!

क्या कहेंगे?
हम इसे!
नसीब अपना अपना!

या नसीब
स्याह बेपनाह है,
गरीब का?

©मो.मंजूर आलम ‘नवाब मंजूर’
#नवाब_मंजूर_की_कविताएं
प्रधानाध्यापक,उमवि भलुआ शंकरडीह,तरैया,सारण (बिहार)

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